यमन के महंगे होते युद्ध से निकलने की तैयारी में सऊदी अरब
८ जुलाई २०२३लंबे समय से क्षेत्रीय ताकतों के प्रभाव में रहा, यमन का खंडित राजनीतिक परिदृश्य जल्द ही और भी ज्यादा पेचीदा हो सकता है. यमन प्रेस एजेंसी के मुताबिक, जून में हदरामाउत इलाके में सऊदी समर्थित पहली प्रशासनिक परिषद का दफ्तर खुला है. ऐसी दूसरी परिषद इस महीन के आखिर में अदन में खोली जाएगी.
काम शुरू करते ही सऊदी समर्थित ये संस्थाएं, एकीकृत यमन के विचार का प्रसार करेंगी. संयुक्त अरब अमीरात समर्थित सदर्न ट्रांजिशनल काउंसिल और बाकी देश से उसके अलग होने की कवायद से यह बिल्कुल उलट होगा.
लंदन स्थित यमन मामलों के स्वतंत्र शोधकर्ता और क्षेत्रीय विशेषज्ञ मैथ्यू हेजेस ने डीडब्ल्यू को बताया, "मुख्य बात है टाइमिंग. ईरान समर्थित हूथी मिलिशिया के साथ सऊदी अरब की शांति वार्ताएं नाकाम होती लगती हैं और सऊदी अरब देश के दक्षिण मे अपने पैर जमाना चाहता है, हालांकि यह काम वह सालों पहले कर सकता था. ये इस बात का इशारा भी हो सकता है कि सऊदी अरब, यमन के दो टुकड़ों मे बंटने की आशंका को स्वीकार कर चुका है."
यमन 2014 से युद्धरत है. उस समय हूथी बागियों ने तत्कालीन राजधानी सना पर कब्जा कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सरकार का तख्ता पलट दिया था. 2015 में हालात तब और बिगड़ गए जब सऊदी अरब की अगुवाई में नौ देशों के गठबंधन ने सरकार को बहाल करने की कोशिश में दखल दिया.
इस गठबंधन में संयुक्त अरब अमीरात भी शामिल था. उस समय सरकार प्रेसिडेंशियल लीडरशिप कांउसिल का रूप ले चुकी थी. संयुक्त अरब अमीरात तमाम मायनों में सऊदी अरब के मजबूत सहयोगी हैं- सिवाय टूट से जुड़े सवाल के.
पिछले दशक में यमन तीन हिस्सों में बंट चुका हैः हूती के नियंत्रण वाला उत्तर का इलाका, संयुक्त अरब अमीरात समर्थित दक्षिणी ट्रांसनिश्नल कांउसिल और सरकार के नियंत्रण वाला बाकी देश जिसे सऊदी अरब का समर्थन हासिल है.
सऊदी अरब की असली दिलचस्पीः युद्ध से किनारा
प्रेक्षकों को इस बात पर संदेह है कि ये नयी परिषदें दक्षिण में राजनीतिक झुकावों को प्रभावित कर पाएंगी.
हेजेस कहते हैं, "ऐसा लगता नहीं कि आदेन की नयी परिषद्, सदर्न ट्रांसिश्नल काउंसिल का गंभीरतापूर्वक मुकाबला करने वाले एक व्यापक राजनीतिक आंदोलन के रूप में एक व्यापक समुदाय के रूप में उभर पाएगी." वास्तव में, वो इन नयी प्रशासनिक संस्थाओं को "कबूतरों के बीच बिल्ली छोड़ने" यानी खतरनाक हालाक में रखने की तरह देखते हैं.
सना में एक स्वतंत्र थिंक टैंक, यमन पॉलिसी सेंटर के रिसर्च एनालिस्ट मोहम्मद अल-ईरानी भी ऐसा ही मानते हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "सऊदी अरब, अदन में राजनीतिक गठबंधन खड़ा करने की बार बार कोशिशें करता रहा है. खासकर उन राजनीतिक गुटों के बीच जो संयुक्त यमन की तमन्ना को साझा करते हैं. वे कोशिशें नाकाम साबित हुई हैं."
हालांकि मोहम्मद अल-ईरानी सऊदी अरब समर्थित परिषदों से मिलने वाला एक दूसरा फायदा देखते हैं. अगर सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात दक्षिण में अपने मतभेदों को सुलझा पाते तो ये नयी परिषदें "दक्षिणी गुटों के बीच स्थानीय संवादों में सहमति निर्माण की संभावना बना सकती हैं. और इसकी बदौलत सऊदी अरब की अगुवाई वाले गठबंधन को युद्ध छोड़ने में मदद मिल सकती है."
दुनिया के सबसे बड़े मानवीय संकटो में से एक
लड़ाई में हालिया नरमी आने के बावजूद यमन में खूनी संघर्ष जारी है. इसे सऊदी अरब और ईरान के बीच प्रॉक्सी वॉर यानी छद्म युद्ध की तरह भी देखा जाता है.
सऊदी अरब महंगे पड़ रहे युद्ध से निकलने की इच्छा को पुरजोर तरीके से जाहिर कर रहा है. ये संभावना तब और मजबूत हो गई जब एक दूसरे के कट्टर दुश्मन रह चुके, सऊदी अरब और ईरान ने मार्च में अपने कूटनीतिक रिश्ते बहाल कर लिए.
इस कदम को, आठ साल में पहली बार हुई कैदियों की हालिया बदलाबदली से और बल मिला. सऊदी अरब ने हज यात्रा के लिए सना से जेद्दाह की उड़ानों की अनुमति भी दे दी. हूती संचालित सबा न्यूज के मुताबिक हज यात्रा में जाने वालों में हूती सैन्य कमेटी के उपप्रमुख याह्या अल-रजामी भी थे.
यमन में संयुक्त राष्ट्र दूत हान्स ग्रुंडबर्ग ने कहा कि ये घटनाएं संघर्षरत पक्षों के बीच विश्वास बहाली का एक गंभीर और सकारात्मक कदम हैं.
यमन के लोगों के लिए उम्मीद की एक किरण भी काफी है. देश में मानवीय हालात पर जुलाई में प्रकाशित यूनिसेफ की ताजा रिपोर्ट ने इस बात की पुष्टि की है कि यमन दुनिया में सबसे ज्यादा मानवीय संकट झेल रहे इलाकों में से एक है. जहां के दो करोड़ 16 लाख लोगों को यानी देश की दो तिहाई आबादी को मानवीय सहायता की जरूरत है.
मानवाधिकार संगठनों और संयुक्त राष्ट्र की बहुत सारी रिपोर्टों में कहा गया है कि युद्ध में करीब पांच लाख लोगों की जान चली गई और हजारों लोग बेघर और विस्थापित हुए हैं.