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समाजविश्व

यमन युद्ध और भूखे बच्चे

७ जुलाई २०२०

यमन संकट अपने सातवें साल में दाखिल होने जा रहा है लेकिन इसका हल अब तक नहीं निकल पाया है. सालों से जारी संकट ने सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों को पहुंचाया. बच्चे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं और कोविड-19 का भी खतरा मंडरा रहा है.

तस्वीर: picture-lliance/Photoshot/M. Mohammed

मसीराह सकीर बमुश्किल ही अपनी आंख खोल पाती है. उसकी दादी किसी तरह से उसे सिरिंज के सहारे दूध पिलाने की कोशिश कर रही है. मसीराह बहुत कोशिशों के बाद दूध पी पाती है. पास ही एक और कुपोषित बच्चा अस्पताल के इस वार्ड में रो रहा है. बच्चों के रोने की आवाजें यमन की त्रासदी बयान करती है जो अब सातवें साल में दाखिल हो गई है.

यमन संकट के सातवें साल में दाखिल हो जाने के बाद भी सबसे अधिक मार अब भी बच्चों पर ही पड़ रही है. मसीराह की उम्र तीन महीने से कुछ कम है. उसका इलाज राजधानी सना के अल-सबीन अस्पताल के शिशु कुपोषण विभाग में चल रहा है. गुलाबी और सफेद मलमली चादर में लिपटी, छोटी और नाजुक मसीराह एक बड़े बिस्तर पर लेटी है, बगल में उसकी दादी है जो उसे दूध पिलाने की जद्दोजहद कर रही है.

यमन युद्ध को संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया की सबसे खराब मानवीय त्रासदी करार दिया है. वहां सालों के विरोध और राजनीतिक संकट के बाद हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए थे. इस संकट ने 8 जुलाई 2014 को निर्णायक मोड़ लिया जब ईरान समर्थति हूथी बागियों ने सना के उत्तरी शहर अमरान में जीत हासिल की, और सरकारी सेना को मात दी. इसके बाद बागियों ने बड़ी आसानी के साथ राजधानी की तरफ कूच किया और उस पर कब्जा कर लिया. लेकिन इसकी कीमत वहां के लाखों नागरिकों को चुकानी पड़ी. मानवीय संकट ऐसा खड़ा हुआ कि आखिरकार लाखों लोग भुखमरी के कगार पर धकेल दिए गए.

मसीराह की तरह हजारों शिशु हैं जो इस संकट के कारण प्रभावित हैं. समाचार एजेंसी एएफपी से उसकी दादी कहती है कि सिर्फ 2.4 किलोग्राम वजनी मसीराह भयानक कुपोषित है. वह कहती हैं, "हमें मेडिकल चेकअप की जरूरत है, दूध और खाने की जरूरत है. अगर अस्पताल में दवा उपलब्ध होती है तो हमें मिल जाती है नहीं तो हमें बाहर से खरीदनी पड़ती है."  जून महीने में यूनिसेफ ने कहा था कि देश को सहायता नहीं मिल पाने की वजह से लाखों बच्चे भुखमरी का सामना कर रहे हैं. सालों से जारी संकट के कारण स्वास्थ्य प्रणाली बुरी तरह प्रभावित हुई है और 33 लाख लोग विस्पाथित हुए हैं. लाखों लोग कैंपों में रहने को मजबूर हैं, जहां हैजा और अन्य बीमारियां व्याप्त हैं.

यमन संकट का हल अब तक नहीं निकल पाया है. तस्वीर: picture-alliance/AA/H. A. Hamad

मार्च 2015 के मानवीय त्रासदी और खराब हो गई जब सऊदी अरब ने यहां दखल दिया, सऊदी ने सरकारी सेना के समर्थन में अपनी सेना उतार दी. हूथी बागियों को रियाद के कट्टर प्रतिद्वंद्वी ईरान का समर्थन हासिल है. हवाई हमलों और युद्ध के कारण लाखों लोगों की मौत हो चुकी हैं जिनमें सैकड़ों बच्चे भी शामिल हैं.

यमन में पहले से ही संकट है और अब कोरोना वायरस की वजह से भी यहां चुनौती बढ़ गई है. देश में कोविड-19 के कारण अब तक 330 लोगों की मौत हो चुकी है. अल-सबीन अस्पताल के कुपोषण विभाग के डॉक्टरों का कहना है कि कोविड-19 और ईंधन की कमी के कारण इलाज में बाधा पैदा हो रही है और हालात पहले से ज्यादा खराब हो गए हैं. अस्पताल के डॉक्टर हाजा अब्दल्लाह अल-फराह कहते हैं कि अभिभावकों को लगता है कि अगर उनके बच्चे अस्पताल में दाखिल होंगे तो उन्हें कोविड-19 होने का जोखिम बढ़ जाएगा. फराह कहते हैं, "कुछ लोग अपने बच्चे को अस्पताल ही नहीं भेजते हैं. उन्हें वायरस का डर है."

यूनिसेफ ने देश की सहायता के लिए 46 करोड़ डॉलर की मांग की है, जिसका इस्तेमाल मानवीय सहायता के लिए होगा इसके अलावा कोविड-19 से लड़ने के लिए अतिरिक्त 5.3 करोड़ डॉलर की मांग रखी है. यूनिसेफ का कहना है कि तत्काल जरूरत के बावजूद पहली मांग का 39 प्रतिशत और दूसरी मांग का सिर्फ 10 प्रतिशत ही मिल पाया है. अल-सबीन अस्पताल के एक और डॉक्टर अमीन अल-आयजारी कहते हैं, "वे अपनी खराब वित्तीय स्थिति के कारण अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्रों में नहीं जा पाते हैं और उनकी मौत घरों में हो जाती हैं."

वे कहते हैं बच्चों को भोजन की जरूरत है. अमीन के मुताबिक, "यमन के बच्चे हर घंटे और हर मिनट मरते हैं."

एए/सीके (एएफपी)

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