सुशीला कार्की के रूप में नेपाल को अपनी नई प्रधानमंत्री मिल गई हैं. नेपाल के जेनजी ने नए प्रधानमंत्री को सोशल मीडिया ऐप डिस्कॉर्ड पर चुना.
नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री सुशीला कार्की ने कहा है कि वह युवा प्रदर्शनकारियों की भ्रष्टाचार को खत्म करने की मांग पर जल्द ही काम शुरू करेंगी. तस्वीर: Skanda Gautam/SOPA Images/ZUMA/picture alliance
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करीब एक हफ्ते तक चले उग्र प्रदर्शनों के बाद नेपाल ने अपनी पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में सुशीला कार्की को चुन लिया है. 'जेनजी' प्रदर्शनों के नाम से हुए मशहूर हुए इन प्रदर्शनों में शामिल जेनजी पीढ़ी ने नई सरकार को चुनने के लिए भी नया तरीका अपनाया. सुशीला कार्की को अतंरिम सरकार का प्रधानमंत्री जेनजी वोटरों ने गेम मैसेजिंग ऐप डिस्कॉर्ड के जरिए चुना. यहां तक कि प्रदर्शनों में इतनी बड़ी संख्या में जेनजी लोगों के शामिल होने के पीछे भी यह ऐप है. वीडियो गेम खेलने वाले लोगों के बीच यह ऐप बेहद मशहूर है. ऐप पर युवाओं से संसद के बाहर होने वाले एक प्रदर्शन में शामिल होने की अपील की गई थी.
नाम ना बताने की शर्त पर 'हामी नेपाल' (हम नेपाल हैं) नाम के गैर सरकारी संगठन के सदस्यों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि उन्होंने सुरक्षा कारणों की वजह से ऐप पर अपने असली नाम छिपाए. इस ग्रुप ने वीपीएन का इस्तेमाल कर नेपाल में पहले से प्रतिबंधित सोशल मीडिया ऐप्स पर लोगों को जोड़ना शुरू किया. 36 साल के सुदन गुरुंग को इस ऐप में एक संभावना नजर आई. गुरुंग ही 'हामी नेपाल' चलाते हैं. वह डीजे भी रह चुके हैं. उन्होंने डिस्कॉर्ड और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया ऐप के जरिए युवाओं तक पहुंचना शुरू किया.
सुशीला कार्की के पीएम बनने के बाद अब वहां के जेनजी नई कैबिनेट के गठन में जुट गए हैं.तस्वीर: Arun Sankar/AFP
18 साल के करण राय बताते हैं कि उन्हें डिस्कॉर्ड पर एक ग्रुप में जुड़ने का न्योता आया जिसमें पहले से ही 400 सदस्य मौजूद थे. प्रदर्शनों के बीच यह समूह इतना अहम हो गया कि सभी जरूरी फैसलों में इस ग्रुप की राय ली गई. नेपाल के राष्ट्रीय मीडिया ने ग्रुप के मैसेज को आधार बनाया. गुरुंग बताते हैं कि सुशीला कार्की को अतंरिम प्रधानमंत्री बनाए जाने की सहमति भी इसी ऐप पर बनी. कार्की को चुनने के पीछे सबसे बड़ी वजह थी भ्रष्टाचार के खिलाफ उनका कड़ा रुख. गुरुंग और उनके समूह के बाकी सदस्य सुशीला कार्की से मिलकर रविवार को कैबिनेट के बाकी सदस्यों की नियुक्ति के मुद्दे पर भी चर्चा करेंगे.
श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल: जनाक्रोश ने कैसे पलट दी सरकारें
श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में चार साल के भीतर जनता के गुस्से ने सरकार पलट दी. इन तीनों देशों में एक जैसा पैटर्न देखने को मिला, जहां लोगों ने भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.
तस्वीर: Amit Machamasi/ZUMA/picture alliance
श्रीलंका में आर्थिक संकट और राष्ट्रपति का इस्तीफा
साल 2022 में श्रीलंका में आर्थिक संकट के कारण देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए. सरकार के खिलाफ जनता सड़कों पर उतर आई और उसने राष्ट्रपति भवन, संसद भवन को अपने कब्जे में ले लिया. महंगाई, बेरोजगारी, ईंधन और दवाइयों की किल्लत ने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया था. लोगों ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे और राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को ना सिर्फ सत्ता से खदेड़ दिया, बल्कि उनके घरों को भी निशाना बनाया.
तस्वीर: Dinuka Liyanawatte/REUTERS
बांग्लादेश का छात्र आंदोलन, हसीना को देश छोड़ना पड़ा
बांग्लादेश में छात्रों के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन उन नियमों के खिलाफ शुरू हुए थे जो योग्यता के आधार पर सिविल सेवा नौकरियों की संख्या को सीमित करते थे. 2024 के जुलाई में ये विरोध प्रदर्शन एक बड़े पैमाने पर देशव्यापी विद्रोह में बदल गए, जिसके बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़कर भारत भागना पड़ा, हिंसक विरोध प्रदर्शनों में सैकड़ों लोग, जिनमें ज्यादातर छात्र थे मारे गए.
तस्वीर: Kazi Salahuddin Razu/NurPhoto/IMAGO
नेपाल में जेन जी का विरोध, प्रधानमंत्री का इस्तीफा
नेपाल में सोशल मीडिया बैन के खिलाफ युवा सड़कों पर उतर आए और 8 सितंबर, 2025 को हुई हिंसा में कम से कम 19 लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों घायल हुए. युवाओं के आंदोलन के तूफान में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार उखड़ गई. नेपाल के युवा सिर्फ सोशल मीडिया बैन के खिलाफ नहीं बल्कि वे बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के मुद्दे पर भी बेहद नाराज हैं.
तस्वीर: Skanda Gautam/ZUMA/dpa/picture alliance
इंडोनेशिया में भी विरोध प्रदर्शन
हाल के जन आंदोलन ने क्षेत्र के अन्य देशों को भी हिलाकर रख दिया है, इनमें इंडोनेशिया भी शामिल है, जहां अगस्त के आखिर में सांसदों के भत्तों के खिलाफ छात्र सड़कों पर उतर आए. इन विरोध प्रदर्शनों में कम से कम आठ लोगों की मौत हो गई है.
तस्वीर: Timur Matahari/AFP/Getty Images
क्यों नाराज हैं दक्षिण एशियाई देशों के युवा
दक्षिण एशिया में हर एक विरोध आंदोलन एक खास शिकायत से शुरू हुआ जो बाद में भड़क उठा और आखिर में सरकार या उसके नेताओं की अस्वीकृति पर समाप्त हुआ. कई मायनों में विरोध आंदोलनों में एक समानता है: सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग और एक जड़ राजनीतिक व्यवस्था के प्रति निराश लोगों का आक्रोश, जिसे वे बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, बढ़ती असमानता और आर्थिक गैरबराबरी के लिए जिम्मेदार मानते हैं.
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नेताओं और नीतियों से नाराज लोग
शिकागो विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर पॉल स्टैनिलैंड कहते हैं, "लोगों में सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग के बारे में यह धारणा कि वे भ्रष्ट हैं और आगे बढ़ने का उचित रास्ता दिखाने में अप्रभावी हैं. इसी कारण बड़े संकट पैदा हो रहे हैं."
तस्वीर: Diwakar Rai/DW
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नई कैबिनेट में दिखेंगे युवा चेहरे
नेपाल की अतंरिम प्रधानमंत्री सुशीला कार्की ने भी शपथग्रहण के बाद कहा है कि यह युवाओं की एक ऐसी क्रांति थी जिसने सबकुछ पलट कर रख दिया. साथ ही उन्होंने कहा कि वह युवा प्रदर्शनकारियों की भ्रष्टाचार को खत्म करने की मांग पर जल्द ही काम शुरू करेंगी. साथ ही उन्होंने कहा कि जिन परिस्थितियों में उन्होंने पदभार संभाला है वह ऐसा नहीं चाहती थी लेकिन उनके नाम का सुझाव सड़कों से यहां आया. उन्होंने यह भी कहा कि वह इस पद पर छह महीने से ज्यादा नहीं रहेंगी और अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करके वह इसे अगले प्रधानमंत्री और मंत्रियों को सौंप देंगी.
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समूह के एक सदस्य ने बताया कि कार्की और उनके समूह के बाकी सदस्यों के बीच बैठक जारी है. वह जल्द ही कैबिनेट सदस्यों के चुनाव पर फैसला करेंगे. हामी नेपाल ने अपने इंस्टाग्राम पेज पर लिखा है कि इस प्रक्रिया को ध्यान से पूरा किया जा रहा है ताकि कैबिनेट में योग्य और काबिल युवा शामिल हों. एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान गुरुंग ने कहा कि वह यह सुनिश्चित करेंगे कि सत्ता लोगों के हाथ में हो और हर भ्रष्ट नेता को सजा दी जाए.
इन प्रदर्शनों में 70 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवाई और 1300 से अधिक लोग घायल हुए. सोशल मीडिया प्रतिबंध और भ्रष्टाचार से गुस्साए युवाओं के इन प्रदर्शनों ने केपी शर्मा ओली को सत्ता से बेदखल कर दिया. अब अगले साल 5 मार्च को नेपाल में अगली सरकार चुनने के लिए मतदान होगा.
वंशवाद, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और सोशल मीडिया बैन से यूं उबल पड़ा नेपाल
नेपाल में आम जनता का बरसों से सुलगता गुस्सा ऐसा फूटा कि पीएम ओली को इस्तीफा देना पड़ा. कई मंत्रियों को भीड़ ने दौड़ा-दौड़ाकर पीटा. आखिर नेपाल की युवा पीढ़ी इतने गुस्से में क्यों है.
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल के नेता और पीएम पद से इस्तीफा दे चुके प्रधानमंत्री केपी शर्मा, सोशल मीडिया पर आलोचना को बर्दाश्त नहीं कर रह पा रहे थे. एक सच्चाई यह भी है कि ओली सोशल मीडिया के समर्थक नहीं हैं और अपने पिछले कार्यकाल से ही वह इन डिजिटल प्लेटफॉर्म पर नकेल कसना चाहते थे.
तस्वीर: Amit Machamasi/ZUMA/picture alliance
क्या ओली से बड़ी गलती हो गई?
केपी शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट के एक साल पुराने निर्देश का इस्तेमाल करते हुए उन सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को एक हफ्ते का नोटिस दिया, जिन्होंने नेपाल में सरकारी नियमों का पालन करने के लिए पंजीकरण नहीं कराया था. लेकिन जल्दबाजी में लिए गए इस फैसले में सरकार ने इसके नतीजों का अंदाजा लगाने में चूक की, खासकर युवाओं के मामले में जिनके बीच इंस्टाग्राम और यूट्यूब बेहद लोकप्रिय हैं.
तस्वीर: Subaas Shrestha/NurPhoto/picture alliance
भ्रष्टाचार कितना बड़ा मुद्दा
नेपाल में 8 सितंबर को जब बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए तो सोशल मीडिया पर बैन तो एक मुद्दा था, इन प्रदर्शनों के दौरान भ्रष्टाचार भी एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा. रिपोर्टों के मुताबिक लगभग सभी शीर्ष नेपाली नेता किसी न किसी भ्रष्टाचार घोटाले में फंसे हुए हैं.
तस्वीर: Skanda Gautam/ZUMA/IMAGO
वंशवाद बनाम आम नेपाली
युवा वर्ग 'नेपो-किड्स' यानी नेताओं के बच्चों की विलासितापूर्ण जीवनशैली से भी नाराज है. यह उस देश में नामंजूर लगता है जो अपनी अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए संघर्ष कर रहा है और जहां रोजाना हजारों युवा रोजगार की तलाश में देश छोड़ रहे हैं. एक अनुमान के अनुसार, हर साल लगभग 8 लाख नेपाली रोजगार के लिए विदेश जाते हैं.
तस्वीर: Diwakar Rai/DW
श्रीलंका और बांग्लादेश से सबक नहीं ले पाई सरकार?
नेपाली नेतृत्व क्षेत्र के बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य, उदाहरण के लिए बांग्लादेश और श्रीलंका में हुए व्यापक परिवर्तनकारी प्रदर्शनों से सबक नहीं ले सका. शीर्ष पदों पर उन्हीं पुराने चेहरों को बैठाना और विकास व सुधारों के मामले में निष्क्रियता ने व्यापक आक्रोश को जन्म दिया.
तस्वीर: Aryan Dhimal/Zumapress/picture alliance
बेरोजगारी भी एक समस्या
वर्ल्ड बैंक के अनुसार, पिछले साल युवा बेरोजगारी दर लगभग 20 फीसदी थी, और सरकार का अनुमान है कि हर रोज 2,000 से अधिक युवा मध्य पूर्व या दक्षिण-पूर्व एशिया में काम की तलाश में देश छोड़ रहे हैं.
तस्वीर: Amit Machamasi/ZUMA/picture alliance
कैसी है नेपाल की अर्थव्यवस्था
वर्ल्ड बैंक के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 2024 में नेपाल का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 42.91 अरब अमेरिकी डॉलर का था. नेपाल का जीडीपी मूल्य विश्व अर्थव्यवस्था का 0.04 प्रतिशत है.
तस्वीर: Diwakar Rai/DW
नेपाल: सियासी तौर पर एक अस्थिर देश
2008 में 239 साल पुरानी राजशाही के खात्मे के बाद से नेपाल राजनीतिक रूप से अस्थिर रहा है. 2008 से अब तक 14 सरकारें बनी हैं, जिनमें से एक भी पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई है. 73 वर्षीय केपी शर्मा ओली ने पिछले साल अपने चौथे कार्यकाल के लिए शपथ ली थी.