बेकार टायरों और प्लास्टिक के कचरे से हर दिन 70 लाख लीटर पेट्रोल और डीजल बनाना, अफ्रीकी देश जाम्बिया इस राह पर तेजी से आगे बढ़ रहा है.
विज्ञापन
जाम्बिया अफ्रीकी महाद्वीप के दक्षिण में स्थित एक देश है, जो चारों तरफ से जमीन से घिरा है. पौने दो करोड़ की आबादी वाला ये देश पेट्रोल, डीजल और गैस के लिए पूरी तरह विदेशी सप्लाई पर निर्भर रहता है. लेकिन जाम्बिया की कंपनी सेंट्रल अफ्रीकन रिन्यूएबल एनर्जी कॉर्पोरेशन आयात पर निर्भरता कम करना चाहती है.
कंपनी फिलहाल हर दिन डेढ़ टन कचरे से 600-700 लीटर पेट्रोल और डीजल बना रही है. फिलहाल यह एक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चल रहा है. जाम्बिया हर साल ईंधन के आयात पर 1.4 अरब डॉलर खर्च करता है. देश हर दिन 14 करोड़ लीटर तेल फूंकता है.
सेंट्रल अफ्रीकन रिन्यूएबल एनर्जी कॉर्पोरेशन के चीफ एक्जीक्यूटिव मुलेंगा मुलेंगा के मुताबिक, "पूरी क्षमता पर आने पर हमें उम्मीद है कि हम देश की 20-30 फीसदी ईंधन की जरूरत पूरी कर पाएंगे." इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए 6 करोड़ डॉलर के निवेश की जरूरत है. मुलेंगा के मुताबिक ऐसा होते ही कंपनी हर दिन 400 टन डीजल, 125 टन पेट्रोल और 30 टन लिक्विड पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) का उत्पादन करने लगेगी. क्षेत्रफल के लिहाज से दुनिया का 39वां बड़ा देश जाम्बिया इस योजना के जरिए घर के तेल से 50 फीसदी पेट्रोलियम डिमांड पूरी करना चाहता है.
ऐसे प्रोडक्ट्स कितने इको फ्रेंडली
प्लांट में 24 घंटे काम होता है. ट्रक प्लास्टिक के डिब्बे, सिथेंटिक रबर वाले टायर लेकर आते हैं. इस कचरे को एक भट्ठी में डाला जाता है और फिर बेहद उच्च तापमान पर रबर और प्लास्टिक के कचरे को एक रिएक्टर में जलाया जाता है. अगले चरण में कुछ उत्प्रेरक मिलाए जाते हैं. तब जाकर पेट्रोलियम ईंधन मिलता है.
दुनिया भर में कई कंपनियां इस तकनीक में निवेश कर रही हैं. कुछ एक्सपर्ट्स इसे एक तीर से दो शिकार जैसा बताते हैं. एक तरफ कचरे का निपटारा और दूसरी तरफ ईंधन का उत्पादन. लेकिन कचरे को पेट्रोलियम में बदलने की इस प्रक्रिया के लिए बहुत सारी ऊर्जा की जरूरत होती है. बाद में ये पेट्रोलियम्स इस्तेमाल के दौरान फिर पर्यावरण में कार्बन डाय ऑक्साइड घोलेंगे. पर यह बात तो दूसरे देशों से आए पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स पर भी लागू होती है.
तेल वरदान है या अभिशाप?
07:27
कम घातक रास्ता
पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स, कोयला या फिर बायोमास जलाने से निश्चित रूप से ग्लोबल वॉर्मिंग को बढ़ाने वाली गैस सीओटू का उत्सर्जन होता है. बीते डेढ़ दशक से पूरी दुनिया हर दिन 9 करोड़ बैरल से ज्यादा कच्चा तेल इस्तेमाल कर रही है. 2026 तक इस मांग के लगातार बढ़ने का अनुमान है. ये सारा कच्चा तेल जमीन या समुद्र के भीतर से निकाला जाता है. फिर विशाल ऑयल या गैस टैकरों की मदद से इसे हजारों किलोमीटर दूर ट्रांसपोर्ट किया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया में भी अथाह सीओटू उत्सर्जित होती है.
इसी गाढ़े काले और लसलसे कच्चे तेल से ही प्लास्टिक भी बनाया जाता है. इस वक्त पूरी दुनिया प्लास्टिक प्रदूषण की महामारी से जूझ रही है. अलग अलग शोधों के मुताबिक इस वक्त दुनिया में 8.3 अरब टन प्लास्टिक मौजूद है, जिसमें से 6.3 अरब टन कचरे के रूप बिखरा पड़ा है. इस्तेमाल के बाद फेंक दिया जाने वाला प्लास्टिक पृथ्वी पर जमीन, हवा और पानी के ईकोसिस्टम का दम घोंट रहा है.
ऐसे में कुछ लोग कहते हैं कि अगर पेट्रोलियम इस्तेमाल हो ही रहा है तो बेहतर है कि ये रिसाक्लिंग से आए. मुलेंगा कहते हैं, "ये सारा कचरा हटाकर और उसे ऊर्जा में बदलकर हम पर्यावरण की सफाई कर रहे हैं."
ओएसजे/आरपी (रॉयटर्स)
कच्चे तेल से क्या क्या मिलता है
कच्चे तेल से सिर्फ पेट्रोल या डीजल ही नहीं मिलता है, इससे हर दिन इस्तेमाल होने वाली ढेरों चीजें मिलती हैं. एक नजर कच्चे तेल से मिलने वाले अहम उत्पादों पर.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/EPA/Str
ब्यूटेन और प्रोपेन
कच्चे तेल के शोधन के पहले चरण में ब्यूटेन और प्रोपेन नाम की प्राकृतिक गैसें मिलती हैं. बेहद ज्वलनशील इन गैसों का इस्तेमाल कुकिंग और ट्रांसपोर्ट में होता है. प्रोपेन को अत्यधिक दवाब में ब्युटेन के साथ कंप्रेस कर एलपीजी (लिक्विड पेट्रोलियम गैस) के रूप में स्टोर किया जाता है. ब्यूटेन को रेफ्रिजरेशन के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
तरल ईंधन
प्रोपेन अलग करने के बाद कच्चे तेल से पेट्रोल, कैरोसिन, डीजल जैसे तरल ईंधन निकाले जाते हैं. सबसे शुद्ध फॉर्म पेट्रोल है. फिर कैरोसिन आता है और अंत में डीजल. हवाई जहाज के लिए ईंधन कैरोसिन को बहुत ज्यादा रिफाइन कर बनाया जाता है. इसमें कॉर्बन के ज्यादा अणु मिलाए जाते हैं. जेट फ्यूल माइनस 50 या 60 डिग्री की ठंड में ही नहीं जमता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. Schmidt
नैफ्था
पेट्रोल, कैरोसिन और डीजल बनाने की प्रक्रिया में जो अपशेष मिलता है, उससे बेहद ज्वलनशील तरल नैफ्था भी बनाया जाता है. नैफ्था का इस्तेमाल पॉकेट लाइटरों में किया जाता है. उद्योगों में नैफ्था का इस्तेमाल स्टीम क्रैकिंग के लिए किया जाता है. नैफ्था सॉल्ट का इस्तेमाल कीड़ों से बचाव के लिए किया जाता है.
तस्वीर: Reuters
नैपाम
कच्चे तेल से मिलने वाला नैपाम विस्फोटक का काम करता है. आग को बहुत दूर भेजना हो तो नैपाम का ही इस्तेमाल किया जाता है. यह धीमे लेकिन लगातार जलता है. पेट्रोल या कैरोसिन के जरिए ऐसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे बहुत जल्दी जलते हैं और तेल से वाष्पीकृत भी होते हैं.
तस्वीर: AP
मोटर ऑयल
गैस और तरल ईंधन निकालने के बाद कच्चे तेल से इंजिन ऑयल या मोटर ऑयल मिलता है. बेहद चिकनाहट वाला यह तरल मोटर के पार्ट्स के बीच घर्षण कम करता है और पुर्जों को लंबे समय तक सुरक्षित रखता है.
तस्वीर: picture-alliance/blickwinkel
ग्रीस
मोटर ऑयल निकालने के साथ ही तेल से काफी फैट निकलता है. इसे ऑयल फैट या ग्रीस कहते हैं. लगातार घर्षण का सामना करने वाले पुर्जों को नमी से बचाने के लिए ग्रीस का इस्तेमाल होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
पेट्रोलियम जेली
आम घरों में त्वचा के लिए इस्तेमाल होने वाला वैसलीन भी कच्चे तेल से ही निकलता है. ऑयल फैट को काफी परिष्कृत करने पर गंधहीन और स्वादहीन जेली मिलती है, जिसे कॉस्मेटिक्स के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
तस्वीर: Fotolia/WavebreakMediaMicro
मोम
ऑयल रिफाइनरी में मोम का उत्पादन भी होता है. यह भी कच्चे तेल का बायप्रोडक्ट है. वैज्ञानिक भाषा में रिफाइनरी से निकले मोम को पेट्रोलियम वैक्स कहा जाता है. पहले मोम बनाने के लिए पशु या वनस्पति वसा का इस्तेमाल किया जाता था.
तस्वीर: Colourbox
चारकोल
असफाल्ट, चारकोल, कोलतार या डामर कहा जाने वाला यह प्रोडक्ट भी कच्चे तेल से मिलता है. हालांकि दुनिया में कुछ जगहों पर चारकोल प्राकृतिक रूप से भी मिलता है. इसका इस्तेमाल सड़कें बनाने या छत को ढकने वाली वॉटरप्रूफ पट्टियां बनाने में होता है.
तस्वीर: Reuters/P. Rebrov
प्लास्टिक
कच्चे तेल का इस्तेमाल प्लास्टिक बनाने के लिए भी किया जाता है. दुनिया भर में मिलने वाला ज्यादातर प्लास्टिक कच्चे तेल से ही निकाला जाता है. वनस्पति तेल से भी प्लास्टिक बनाया जाता है लेकिन पेट्रोलियम की तुलना में महंगा पड़ता है.