बर्लिन में यूक्रेन रिकंस्ट्रक्शन कॉन्फ्रेंस में हिस्सेदारी के लिए पहुंचे यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने जर्मनी की संसद को संबोधित किया. वह अपने देश के पुन: निर्माण के लिए आर्थिक सहायता जुटाने पहुंचे हैं.
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जर्मनी पहुंचे यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने जर्मन सांसदों से कहा कि यूक्रेन पर रूसी चढ़ाई की वजह से उनके देश को हुए नुकसान की भरपाई रूस को करनी होगी. उन्होंने कहा, "जिन्होंने युद्ध की शुरुआत की है उन्हें जिम्मेदारी उठानी होगी. उन्हें युद्ध अपराधों के लिए कानून के सामने पेश होना होगा."
उन्होंने आगे कहा, "जैसे ही पुतिन ने हमारे शहरों को जलाना शुरु किया, संधियों के बजाए खून करना शुरु किया, समझौते का वक्त खत्म हो गया." जेलेंस्की ने यह बयान जर्मन संसद के निचले सदन बुंडेसटाग में दिया. यह पहला मौका है जब वह जर्मनी की संसद में पहुंचे. धुर दक्षिणपंथी जर्मन पार्टी एएफडी समेत बीएसडब्ल्यू ने भी जेलेंस्की के इस संबोधन का बहिष्कार किया. वोलोदिमीर जेलेंस्की यूक्रेन रिकंस्ट्रक्शन कॉन्फ्रेंस में भागीदारी के लिए बर्लिन में हैं.
यूक्रेन रिकंस्ट्रक्शन कॉन्फ्रेंस
मंगलवार को शुरु हुई कॉन्फ्रेंस में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की और जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने एक मंच से यूक्रेन को आपात रक्षा सहायता देने की अपील की है. जेलेंस्की ने कहा कि यूरोप में रूस की तरफ नरमी की भावना खतरनाक हो सकती है. रूस ईयू को तोड़ने की ताक में है.
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शॉल्त्स ने सहयोगी देशों से यूक्रेन का समर्थन करने की गुजारिश करते हुए कहा कि जो संभव हो वह करें "क्योंकि वही पुनर्निर्माण बेहतर है जिसे करने की जरूरत ही ना पड़े."
जेलेंस्की ने कहा कि उनके देश को सात पैट्रियट एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम चाहिए ताकि यूक्रेनी शहरों को रूसी हवाई हमलों से बचाया जा सके. उन्होंने यह भी कहा कि उनके देश में ऊर्जा के ढांचे को बहाल करने के लिए और मदद चाहिए होगी जो इस युद्ध में तबाह हो चुका है.
बर्लिन में जेलेंस्की के बयान के बीच-बीच में तालियों की गड़गड़ाहट से रुकावट पैदा होती रही जहां नेता और बिजनेस जगत समेत अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के अधिकारी मौजूद थे. बर्लिन कॉन्फ्रेंस में दुनिया के 60 देशों से 2,000 प्रतिनिधि शामिल हुए हैं जो यूक्रेन में पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में हिस्सेदार कर रहे हैं. यह पैसों जुटाने के मकसद से जुड़ी डोनर कॉन्फ्रेंस नहीं है.
जर्मनी-यूक्रेन रिकंस्ट्रक्शन डिक्लेरेशन पर हस्ताक्षर
रॉयटर्स न्यूज एजेंसी की खबरों के मुताबिक यूक्रेन और जर्मनी के वित्त मंत्रियों ने एक साझा घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए हैं जिसका मकसद यूक्रेन युद्धके बाद पुनर्निर्माण के लिए मदद देना है. जर्मनी के वित्त मंत्री क्रिस्टियान लिंडनर ने कहा, यूक्रेन को यह युद्ध जीतने के लिए जो भी मदद चाहिए हम उसकी सीमाएं तय नहीं कर रहे हैं, हम अभी सहयोग करना चाहते हैं ताकि यूक्रेन भविष्य में पुनर्निर्माण के जरिए विकास के रास्ते पर आगे बढ़ सके."
यह कदम जर्मनी में यूक्रेन के लिए समर्थन जुटाने के मकसद हो रही रिकंस्ट्रशन कॉन्फ्रेंस के इर्द गिर्द उठाया गया है. वर्ल्ड बैंक का अनुमान है कि आने वाले वर्षों में यूक्रेन को अरबों डॉलर की सहायता की जरूरत होगी.
वोलोदिमीर जेलेंस्की ने अपने भाषण में जर्मन सरकार को धन्यवाद दिया कि वह उनके देश को हवाई रक्षा सिस्टम समेत अन्य किस्म की मदद मुहैया करवाने की कोशिशें कर रही है.
नाटो के 75 साल: कोल्ड वॉर से यूक्रेन वॉर तक
नाटो 75 साल का हुआ. तनाव और असुरक्षा से भरे शीत युद्ध के लंबे दशकों से लेकर यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोप में सुरक्षा की बदलती तस्वीर तक, देखिए नाटो का सफर.
तस्वीर: Monika Skolimowska/dpa/picture alliance
12 संस्थापक देश
4 अप्रैल 1949 को 12 देशों ने मिलकर नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (नाटो) का गठन किया. ये संस्थापक देश थे: अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, बेल्जियम, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड्स, नॉर्वे और पुर्तगाल.
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वॉशिंगटन में दस्तखत हुए
इन 12 देशों के विदेश मंत्रियों ने वॉशिंगटन के डिपार्टमेंटल ऑडिटोरियम में समझौते पर दस्तखत किए. इसे वॉशिंगटन ट्रीटी के नाम से भी जाना जाता है. हस्ताक्षर समारोह के पांच महीनों के भीतर सदस्य देशों की संसद ने समझौते पर कानूनी मुहर लगा दी. इस तरह ये देश संधि में कानूनी और राष्ट्रीय प्रतिबद्धता के साथ दाखिल हुए.
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आर्टिकल पांच और साझा सुरक्षा
समवेत सुरक्षा और एक-दूसरे के लिए खड़ा होना, नाटो के मूलभूत सिद्दांतों में है. ट्रीटी का आर्टिकल पांच साझा सुरक्षा की गारंटी देता है. इसके मुताबिक, सदस्य देश सहमति देते हैं कि यूरोप या उत्तरी अमेरिका में एक या एक से ज्यादा सदस्य देशों पर हथियारबंद हमले की स्थिति में इसे पूरे ब्लॉक पर हमला माना जाएगा.
तस्वीर: Monika Skolimowska/dpa/picture alliance
एक पर हमला, सब पर हमला
हमले की स्थिति में हर सदस्य संयुक्त राष्ट्र चार्टर के आर्टिकल 51 में दर्ज निजी या सामूहिक आत्मरक्षा के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए उस सदस्य देश की मदद करेगा, जिसपर हमला हुआ है. सभी सदस्य नॉर्थ अटलांटिक इलाके की सुरक्षा बरकरार रखने और हनन की स्थिति में इसे वापस कायम करने के लिए जरूरत पड़ने पर सशस्त्र सेना और हथियारों का भी इस्तेमाल करेंगे.
तस्वीर: MDR/BR/DW
9/11 के बाद आर्टिकल पांच का इस्तेमाल
आर्टिकल पांच यह भी कहता है कि जो जवाबी कदम उठाए जाएंगे, उनकी सूचना तुरंत सुरक्षा परिषद को दी जाएगी. जब परिषद अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा वापस कायम करने की दिशा में जरूरी कदम उठा लेगा, उसके बाद नाटो की ओर से की जा रही कार्रवाई रोक दी जाएगी. अब तक नाटो ने आर्टिकल पांच का इस्तेमाल केवल 9/11 के आतंकी हमले के बाद किया है.
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नाटो में विस्तार
नाटो में समय-समय पर विस्तार होता रहा है. अब तक विस्तार के 10 चरण रहे हैं. पहली बार 1952 में समूह का विस्तार हुआ, जब ग्रीस और तुर्की ब्लॉक में शामिल हुए. फिर 6 मई 1955 को जर्मनी (तत्कालीन फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी, या वेस्ट जर्मनी) नाटो का 15वां सदस्य बना. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद पूर्वी यूरोप के कई देश नाटो में आए. ये दो चरणों में हुआ.
तस्वीर: Mike Nelson/dpa/picture alliance
शीतयुद्ध के बाद का विस्तार
साल 1999 में हुए पोस्ट-कोल्ड वॉर के पहले विस्तार में चेकिया, हंगरी और पोलैंड सदस्य बने. फिर मार्च 2004 में बुल्गारिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया को नाटो की सदस्यता मिली. नाटो के सबसे नए सदस्य हैं फिनलैंड (अप्रैल 2023) और स्वीडन (मार्च 2024). इस तरह नाटो में अब 32 सदस्य हैं.
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बालकन्स पर रूस के साथ तनाव
2009 में अल्बानिया और क्रोएशिया, 2017 में मॉन्टेनीग्रो और 2020 में नॉर्थ मैसिडोनिया नाटो के सदस्य बने. ये बालकन देश हैं. बाल्कन्स का इलाका लंबे समय से रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनाव की वजह रहा है. पश्चिम की ओर से यूरोपीय संघ और नाटो यहां विस्तार करना चाहते हैं, वहीं रूस भी अपने इस पूर्व प्रभावक्षेत्र में सहयोगी तलाश रहा है.
तस्वीर: Maxim Shemetov/REUTERS
रूस का नाटो पर विस्तारवाद का आरोप
ऐसे में रूस लंबे समय से बालकन्स में नाटो के विस्तार का विरोध करता रहा है. वह इसे नाटो की विस्तारवादी नीति बताता है और अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता है. 2014 में क्रीमिया पर रूसी कब्जे के बाद मॉस्को का नाटो से विरोध और गहराता गया. फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद तनाव अपने चरम पर पहुंच गया.
तस्वीर: Maxim Shemetov/REUTERS
यूक्रेन में जारी युद्ध का गहरा असर
यूक्रेन युद्ध ने यूरोप में सुरक्षा की भावना को गहराई तक हिला दिया है. यूक्रेन को मदद चाहिए, ना केवल फंड बल्कि सैन्य साजो-सामान भी. ऐसे में अभी नाटो के आगे सबसे बड़ी चुनौती यह है कि युद्ध के बीच कीव को किस तरह मदद मुहैया कराई जाए.
नाटो सीधे तौर पर युद्ध का हिस्सा नहीं बन सकता, लेकिन यूक्रेन में रूस को बढ़त पूरी क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए अकल्पनीय चुनौती होगी. ऐसे में नाटो देशों के बीच यूक्रेन को दी जाने वाली सहायता के प्रारूप, स्वभाव और आकार पर बातचीत जारी है. रूस के साथ समीकरण नाटो की सबसे बड़ी चुनौतियों में है.
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इटली ने किया सैन्य और ढांचागत सहायता का एलान
इटली के विदेश मंत्री अंटोनियो तयानी ने कहा कि उनका देश यूक्रेन को नया सैन्य पैकेज मुहैया देने की तैयारी कर रहा है जिसमें हवाई रक्षा सामग्री भी शामिल है. यह घोषणा इसी कॉन्फ्रेंस के दौरान की गई. रॉयटर्स की रिपोर्टे के मुताबिक तयानी ने कहा कि इतालवी सरकार यूक्रेन में ढांचागत पुनर्निर्माण के लिए 140 करोड़ यूरो का पैकेज देने के लिए तैयार है. इसके अलावा उसे एयर डिफेंस के लिए और ज्यादा मदद देने की भी योजना है.
इस कॉन्फ्रेंस के दौरान जर्मनी के चांसलर ने सभी साथी देशों से जोर देकर कहा कि वह यूक्रेन की हवाई रक्षा प्रणाली को मजबूती देने के लिए पूरी सहायता करने की कोशिश करें. हालांकि जेलेंस्की ने यह भी कहा कि यूक्रेन को पहले से मदद मिल रही है लेकिन रूस को ग्लाइड बमों, मिसाइलों और ड्रोन की वजह से घातक रणनीतिक बढ़त मिली हुई है. उन्होने कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को शांति समझौते के रास्ते पर लाने का केवल एक ही तरीका है कि उन्हें यूक्रेन युद्ध में आगे बढ़त बनाने से रोका जाए.
यूक्रेनी रिफ्यूजियों की वापसी की उम्मीद
जेलेंस्की ने कहा कि वह उम्मीद करते हैं कि यूक्रेनी रिफ्यूजी अपने देश वापिस लौट आए हैं लेकिन केवल युद्ध खत्म होने के बाद. इस वक्त यूक्रेनी लोगों को वापिस बुलाने के लिए नारों और कैंपेन का कोई मतलब नहीं बनता.जेलेंस्की ने कहा, इस बात में कोई शक नहीं है कि आमतौर पर पुनर्निर्माण का काम युद्ध के बाद ही होगा.
राष्ट्रपति ने कहा कि यूक्रेन छोड़कर गए लोगों में वापिस आकर हाथ बंटाने के लिए बहुत उत्साह होगा जब शांति होगी. उस वक्त नौकरियां होंगी क्योंकि यूक्रेन में कुशल कामगारों के पहले ही बहुत मांग है. जेलेंस्की ने यह बातें एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में कही जिसमें ओलाफ शॉल्त्स ने उनके समर्थन की बात कही.